Monday, April 6, 2020

Will quarantine and isolation save India

Will Quarantine and isolation save India ? Will Quarantine and isolation save India ?
( क्या क्वॉरेंटाइन एवं आइसोलेशन भारत को बचा पाएंगे ?)

वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देश एक ऐसी महामारी से लड़ रहे हैं जिसका इलाज किसी देश के पास नहीं है । फिर चाहे वह अमेरिका जैसी महाशक्ति हो अथवा यूरोप जैसा उपनिवेशवादी महाद्वीप सभी इस समय अपने देश , अपने अर्थव्यवस्था , अपने नागरिकों को बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयासरत हैं  ।किंतु दवा उपलब्ध ना होने के कारण देश अपने नागरिकों को आइसोलेशन  एवं क्वॉरेंटाइन की सलाह दे रहे हैं । कुछ देश लाकडाउन भी कर दिए गए हैं किंतु आइसोलेशन एवं क्वॉरेंटाइन ही अब तक इसका सबसे कारगर उपाय साबित हुआ है ।

क्वॉरेंटाइन शब्द लैटिन भाषा के शब्द क्वारेंटेना  से बना है। जिसका  अर्थ ‘40 दिन के समय’ से है। इसका अर्थ किनारे पर आने-जाने से रोकना है।

ऐसी कोई बीमारी, जिसकी मानव से मानव में स्थानांतरित होने की पुष्टि  हो चुकी है और उस दौरान यदि किसी व्यक्ति के संक्रमित होने की आशंका होती है, भले ही उसमें संक्रमण के लक्षण न प्रकट हुए हो तो भी उस व्यक्ति की गतिविधियाँ को एक स्थान विशेष में सीमित कर दिया जाता है।पुराने समय में जिन जहाज़ों में किसी यात्री के रोगी होने या जहाज़ पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता था, तो उस जहाज़ को बंदरगाह से दूर चालीस दिन ठहरना पड़ता था।

प्राचीन काल में विभिन्न समाजों ने संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिये क्वॉरेंटाइन का सहारा लिया है, तथा यात्रा व परिवहन पर प्रतिबंध लगाया है। इतना ही नहीं संक्रमित व्यक्तियों के संक्रमण मुक्त होने तक समुद्री संगका भी सहारा लिया।ग्रेट ब्रिटेन में प्लेग को रोकने के प्रयास के रूप में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी।

बैक्टीरिया या वायरस संक्रमण के तेजी से हो रहे प्रसार को कम करने के लिये क्वारंटाइन को सबसे प्रभावी और पुराना तंत्र माना जाता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के रखरखाव और बीमारियों के संचरण को नियंत्रित करने के लिये दुनिया के सभी न्यायालयों द्वारा कानूनी रूप से अनुमोदित किया गया है।   

यह दर्शाता है कि चिकित्सा जगत ने क्वारंटाइन विधि को संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने में एक प्रभावी उपाय के रूप में मान्यता दी है।  वर्ष 1377 में यूरोप महाद्वीप में तेज़ी से फैल रहे प्लेग के प्रसार को रोकने के लिये ग्रेट काउंसिल (Great Council) ने पहली बार मेडिकल आइसोलेशन बिल को पारित किया।

आइसोलेशन के अंतर्गत 30 दिन की समयावधि को निर्धारित किया गया, जिसे ट्रेंटिनो (Trentino) नाम दिया गया। जब इस समयावधि को बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया तब इसे क्वारंटाइन नाम से जाना जाने लगा।

सामान्य रूप से आइसोलेशन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हो जाता है। इस प्रक्रिया में संक्रमित व्यक्ति को अन्य गैर संक्रमित लोगों से अलग कर दिया जाता है ताकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में न स्थानांतरित हो पाए। वहीँ क्वारंटाइन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब किसी समूह या समुदाय के संक्रमित होने की आशंका व्यक्त की जाती है।
आइसोलेशन का कार्य स्वास्थ्य उपकरणों से लैस परिसरों यथा: हॉस्पिटल, मेडिकल सेंटर, मेडिकल कॉलेज इत्यादि स्थानों पर ही संभव है। जबकि क्वारंटाइन की प्रक्रिया अस्थाई तौर पर सीमित स्वास्थ्य उपकरणों से लैस स्थानों पर अपनाई जा सकती है। व्यक्ति स्वयं को होम क्वारंटाइन भी कर सकता है अर्थात अपने घर के किसी एक कमरे में ही अपनी गतिविधियों को सीमित कर ले। 

जहाँ आइसोलेशन का उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति को पूर्णरूप से संक्रमण मुक्त करना है तो वहीँ क्वारंटाइन का उद्देश्य संक्रमण की आशंका वाले समूह या समुदाय की निगरानी करना है। कोरोनावायरस के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आइसोलेशन की कोई अवधि निर्धारित नहीं की है जबकि क्वॉरेंटाइन के लिए 14 दिन निर्धारित किए गए हैं । यहां प्रश्न यह भी उठता है कि क्या किसी व्यक्ति को क्वॉरेंटाइन करना उसके मूल अधिकारों का हनन है क्योंकि व्यक्ति को समाज से अलग कर दिया जाता है जबकि अंग्रेजी की कहावतें यूनिवर्स सोशल एनिमल अर्थात मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ।वर्ष 1990 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि एकांतवास में किसी व्यक्ति को रखना निश्चित ही उसके मूल अधिकारों का हनन है, परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित है जिसका प्रसार एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में हो सकता है तब ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पब्लिक हेल्थ के विरुद्ध प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। 


भारत में होम क्वॉरेंटाइन करना अत्यधिक जटिल है क्योंकि जहां भारत का जनसंख्या घनत्व 382 है वही दिल्ली का जनसंख्या घनत्व 13000 /km2 तो बिहार बंगाल का 1100 व उत्तर प्रदेश का 892 है अर्थात अत्यधिक जनसंख्या घनत्व होने के कारण होम क्वॉरेंटाइन करना भी सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कदम है।जागरूकता में कमी के कारण लोग अस्थाई तौर पर निर्मित किये गए क्वारंटाइन सेंटर्स से भाग जाते हैं।क्वारंटाइन सेंटर्स में निवास कर रहे लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करते हुए आपस में वस्तुओं का लेनदेन करते हैं।यह भी देखा जा रहा है कि विभिन्न क्वारंटाइन सेंटर्स में आवश्यक मूलभूत सुविधाओं की कमी है।             

प्राकृतिक या मानवजनित बड़ी आपदाओं से निपटने के लिये बनाए गए राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति के माध्यम से सामाजिक संगठनों, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये।एक समर्पित वेब पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें प्रमुख संकेतक, रोग की पहचान संबंधी दिशा-निर्देश, जोखिम संचार सामग्री और उपायों की कार्ययोजना शामिल हो।सरकार को आइसोलेशन वार्ड की सुविधा के साथ सेपरेशन किट, मास्क इत्यादि की व्यवस्था करनी चाहिये।कोरोना वायरस से बचाव न केवल सरकार का उत्तरदायित्व है बल्कि सभी संस्थानों, संगठनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, यहाँ तक कि सभी व्यक्तियों को इससे बचाव हेतु आकस्मिक और अग्रिम तैयारी की योजनाएँ बनानी चाहिये।